मंगलवार, 27 सितंबर 2011

'लोग पुकारे जाएँगे, जब नाम से अपनी माओं के'

(63)
रोगी ज़ौजा*, घोर थकन, ख़्वाब-आवर* जुर्रे* से आगाह
मैं तो नहीं हूँ, वो तो होगा, उलझे रिश्ते से आगाह

बीज में सपना जैसी कोंपल, ऊपर सूखा मरता फूल
धुंध में बे-आसारी को मैं गिरते मलबे से आगाह

लोग पुकारे जाएँगे, जब नाम से अपनी माओं के
उस दिन शायद कोई न होगा नुत्फ़े* से आगाह

बंद दुकान ये दारू की और उसके आगे रूकता मैं
मुर्दा नींदें काश न होतीं अपने नुसख़े से आगाह

नाज़ेबा* बातों पर अपनी हम ख़ुद लज़्ज़त लेते थे
नाख़ुश-नाख़ुश लोग कहाँ थे निस्फ़* दरिंदे से आगाह

1- रोगी ज़ौजा--बीवी, पत्नी
2- ख़्वाब-आवर--नींद लाने वाला
3- जुर्रे* --घूँट
4-परिचित
5-नुत्फ़े*--गर्भ
6-नाज़ेबा*--अशोभनीय
7-निस्फ़--अर्द्ध

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