शुक्रवार, 30 सितंबर 2011

'आँगन आँगन फिरते देखी, सूरज जैसी चीज़ कोई'

(64)
क़रिया-ए-इम्काँ*, आग सफ़र की, जज़्बा, सहरा-गर्द* मिला
मुश्किल हर उफ़ताद* थी लेकिन, सहने मेंदिन फ़र्द* मिला

बरसों-बरसों रहते हुए भी, घर के एक अहाते में
ख़्वाब की औऱत मुझको मिली और उसको ख़्याली मर्द मिला

आँगन आँगन फिरते देखी, सूरज जैसी चीज़ कोई
लेकिन जब-जब झाँक के देखा, मौसम घर का सर्द मिला


दश्ते-बदन* में पिन्हाँ पाई कैसी बे-तिस्कीनी-सी*
टूट के ख़ुद को चाहने वाला दिनभर कूचा गर्द* मिला

हँसते-हँसते याद दिलाई उसने पुराने जख़्मों की
बरसों बाद अचानक हमको शहर में इक हमदर्द मिला

1-संभावनाओं का शहर
2-जंगल-जंगल भ्रमण करने वाला
3-विपत्ति
4-बेजोड़
5-अस्तित्व के वन में
6-व्यग्रता
7-गली-गली भटकने वाला

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