tag:blogger.com,1999:blog-16211333008520571992024-03-13T21:46:36.767-07:00मेरे लहू की आगकिस-किस के घर का नूर थी मेरे लहू की आग,
जब बुझ गया तो फिर से जलाया गया मुझे।nishtarhttp://www.blogger.com/profile/17659920481241414228noreply@blogger.comBlogger126125tag:blogger.com,1999:blog-1621133300852057199.post-79112250064223606022013-04-05T10:34:00.002-07:002013-04-05T10:34:22.895-07:00"मीर" कोई था "मीरा" कोई लेकिन उनकी बात अलग<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
118)<br />
<br />
छोड़ो मोह! यहाँ तो मन को बेकल बनना पड़ता है<br />
मस्तों के मयख़ाने को भी मक़तल बनना पड़ता है<br />
<br />
सारे जग की प्यास बुझाना, इतना आसाँ काम है क्या?<br />
पानी को भी भाप में ढलकर बादल बनना पड़ता है<br />
<br />
जलते दिए को लौ ही जाने उसकी आँखें जानें क्या?<br />
कैसी-कैसी झेल के बिपता, काजल बनना पड़ता है<br />
<br />
"मीर" कोई था "मीरा" कोई लेकिन उनकी बात अलग<br />
इश्क़ न करना, इश्क़ में प्यारे पागल बनना पड़ता है<br />
<br />
शहर नहीं थे, गाँव से पहले जंगल बनना पड़ता है<br />
<br />
"निश्तर" साहब! हमसे पूछो, हमने ज़र्बे झेली हैं<br />
घायल मन की पीड़ समझने घायल बनना पड़ता है<br />
<br />
मक़तल--वधशाला<br />
ज़र्बे - चोटें<br />
<br />
"मेरे लहू की आग" इस ग़ज़ल शीर्षक की ये आखिरी ग़ज़ल थी।</div>
nishtarhttp://www.blogger.com/profile/17659920481241414228noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1621133300852057199.post-76583069396018521532013-04-05T10:09:00.000-07:002013-04-05T10:09:03.507-07:00'तुम्हारे बाद भी रातें सजी हुई हैं यहाँ'<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
117)<br />
<br />
तुम्हारे बाद भी रातें सजी हुई हैं यहाँ<br />
जले हैं दीप, पर आँखें बुझी हुई हैं यहाँ<br />
<br />
तेरी विदाई को अर्सा गुज़र गया है मगर<br />
इसी बेक़ुए पे घड़ियाँ रूकी हुई हैं यहाँ<br />
<br />
चलो शुरू-ए-सफ़र अब नई जगह से करें<br />
बड़ी तवील क़तारें लगी हुई हैं यहाँ<br />
<br />
गुज़र गई शबे-वादा मगर उसी दिन से<br />
तुम्हारी आस में रातें थमी हुई हैं यहाँ<br />
<br />
चले तो आए हो महफ़िल में 'ख़ानक़ाही' तुम<br />
मगर तमाम निशस्तें भरी हुई हैं यहाँ<br />
<br />
बेक़ूए- स्थान<br />
तवील- लंबी</div>
nishtarhttp://www.blogger.com/profile/17659920481241414228noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1621133300852057199.post-23007688851969720852013-04-05T09:55:00.002-07:002013-04-05T09:55:38.584-07:00'भारी था जिसका बोझ वो लम्हा लिए फिरा'<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
(116)<br />
<br />
भारी था जिसका बोझ वो लम्हा लिए फिरा<br />
सर पर मैं इक पहाड़ को तन्हा लिए फिरा<br />
<br />
आँखें थीं बंद देखने वाला कोई ना था<br />
ऐसे में दिल का दाग़! तमन्ना लिए फिरा<br />
<br />
इस फ़िक्र में कि चेहरा-ए-मौजूँ कोई मिले<br />
होठों पे मैं ख़याल का बोसा लिए फिरा<br />
<br />
समझा नहीं कि ख़िल्क़ को रास आ गई है धूप<br />
नाहक़ मैं इस दयार में साया लिए फिरा<br />
<br />
नादाँ हूँ दिल पे हर्फ़्र-वफ़ा लिख के शहर-शहर<br />
मैं यादगारे-एहदे-गुज़िश्ता लिए फिरा<br />
<br />
1-ख़िल्सा-संसार<br />
2-नाहक़--व्यर्थ<br />
3-यादगारे-एहदे-गुज़िश्ता -बीते दिनों की याद</div>
nishtarhttp://www.blogger.com/profile/17659920481241414228noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1621133300852057199.post-31126833167911419112013-04-05T09:47:00.001-07:002013-04-05T09:47:18.947-07:00' हवाए-नग़मा* मेरे जह्न के अंदर तो आ'<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
(115)<br />
<br />
ऐ हवाए-नग़मा* मेरे जह्न के अंदर तो आ<br />
देखना है तुझको जलते शहर का मंज़र तो आ<br />
<br />
संगरेजों* की तरह बिखरी हुई है कहकशाँ<br />
मेरे सीने से निकल, ऐ आस्माँ बाहर तो आ<br />
<br />
ले न यों कम-फ़ुर्सती* से मुद्दआ*, बे-रग़बती*<br />
अब अगर अक्सर नहीं आता न आ, कमतर तो आ<br />
<br />
अब हवा के सामने सीना-सियर* यों ही न हो<br />
दिल को अपने दे सके फ़ौलाद का पैकर तो आ<br />
<br />
कुछ-न-कुछ बाक़ी तो होगा, खुदफ़रोशी* से बदन<br />
बर्फ़ अब गिरने को है ऐ जाँ तहे-चादर* तो आ<br />
<br />
1- ऐ हवाए-नग़मा*--गीत लाने वाली हवा<br />
2- संगरेजों--पत्थर के टुकड़ों<br />
3- कहकशाँ--आकाश गंगा<br />
4- कम-फ़ुर्सती--व्यवस्तता<br />
5- मुद्दआ*-अर्थ<br />
6- बे-रग़बती*--अलगाव<br />
7- सीना-सियर*--आमने-सामने<br />
8- खुदफ़रोशी*--स्वयं को बेचना<br />
9-तहे-चादर*--चादर के नीचे</div>
nishtarhttp://www.blogger.com/profile/17659920481241414228noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1621133300852057199.post-5336512035132119472013-02-22T10:16:00.002-08:002013-02-22T10:18:02.171-08:00"बिछुड़ के ख़ुद से चला था कि मर गया इक शख़्स"<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
(114)<br />
<br />
तपिश से आग की पानी बचा तो होगा ही<br />
बदन को देख कहीं आबला* तो होगा ही<br />
<br />
ये बर्गे-सब्ज़* भी आख़िर ज़मीं का हिस्सा है<br />
जो कुछ नहीं है, यहाँ हादिसा तो होगा ही<br />
<br />
अभी से ख़ौफ़-सा क्या है की क़ुर्ब* का ये पल<br />
जुदा तो होना है आख़िर, जुदा तो होगा ही<br />
<br />
बिछुड़ के ख़ुद से चला था कि मर गया इक शख़्स<br />
नज़र से गर नहीं देखा, सुना तो होगा ही<br />
<br />
हवा के रूख़ को रवादारियों* का पर्दा क्या?<br />
वो आज दोस्त है, इकदिन ख़फ़ा तो होगा ही।<br />
<br />
1-आबला*--फफोला<br />
2-बर्गे-सब्ज़*--हरा पत्ता<br />
3-क़ुर्ब*--मिलन<br />
4-रवादारियों*--रख-रखाव</div>
nishtarhttp://www.blogger.com/profile/17659920481241414228noreply@blogger.com3tag:blogger.com,1999:blog-1621133300852057199.post-72646972608327563622013-02-22T10:08:00.000-08:002013-02-22T10:08:07.942-08:00"आख़िरी चेहरा समझकर ज़ह्न में रख लो मुझे"<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
(113)<br />
<br />
कुश्तो-खूँ* है जिस्मों-जाँ* के दरमियाँ ऐसा न हो<br />
मेरा अपना सर ही मेरे हाथ पर रक्खा न हो<br />
<br />
ये भी मुमकिन है कि कज-बहसी* की आदत हो उसे<br />
ये भी मुम्किन है वो मेरी बात ही समझा न हो<br />
<br />
ख़ून की आँधी में सूरज डूबते देखा है रात<br />
औऱ ख़्वाबों की तरह, यह ख़्वाब भी सच्चा न हो<br />
<br />
कल का सूरज कौन से आलम में निकले क्या ख़बर<br />
मैं जहाँ हूं, कल वहाँ बस धूल हो, दरिया न हो<br />
<br />
मौसमों की धुंध में लिपटी हुई उम्रे-रवाँ*<br />
सिर्फ इक लम्हा जिसे ढूँढ़ा तो हो, पाया न हो<br />
<br />
आख़िरी चेहरा समझकर ज़ह्न में रख लो मुझे<br />
क्या ख़बर फिर इस ज़मीं पर आदमी पैदा न हो।<br />
<br />
1-कुश्तो-खूँ*--मार-काट<br />
2- जिस्मों-जाँ*--शरीर और आत्मा<br />
3-कज-बहसी*--अनुचित वाद-विवाद<br />
4-उम्रे-रवाँ*--गुज़रती उम्र<br />
<br />
<br /></div>
nishtarhttp://www.blogger.com/profile/17659920481241414228noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1621133300852057199.post-43129417770855089712013-02-22T09:58:00.000-08:002013-02-22T09:58:19.671-08:00"नाव बहाकर पानी में, मत काग़ज़ की तौक़ीर* बहा"<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
(112)<br />
<br />
सोज़े-दरूँ* से परबत पिघले, बस्ती-बस्ती नीर बहा<br />
मेरी तो औक़ात ही क्या है, सैले-बला में 'मीर' बहा<br />
<br />
तेज़ हवा, तूफ़ानी बारिश, बरगद धरती छोड़ गए<br />
अब के इस तूफ़ाने-गज़ब में कैसा-कैसा वीर बहा<br />
<br />
हिज्र की रूत में बाल बिखेरे मैं भी घूमूँ, तू भी अब<br />
तन्हा बैठ के आँसू-आँसू काजल की तहरीर बहा<br />
<br />
सागर-तट पर बैठ के पहरों, मिलने वाली बात कहाँ<br />
लाख हवा की लहरों पर आवाज़ बहा, तस्वीर बहा<br />
<br />
नादाँ बालक! तू क्या जाने मसरफ़* है किस चीज़ का क्या<br />
नाव बहाकर पानी में, मत काग़ज़ की तौक़ीर* बहा<br />
<br />
1-सोज़े-दरूँ*-- भीतर की ज्वाला<br />
2-मसरफ़*--उपयोग<br />
3-तौक़ीर*--सम्मान, महत्व</div>
nishtarhttp://www.blogger.com/profile/17659920481241414228noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1621133300852057199.post-68370692569610487452013-01-29T10:42:00.002-08:002013-01-29T10:42:41.298-08:00'फिर वही आवारगी है, फिर वही शर्मिंदगी'<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
(111)<br />
उम्र के अय्याम* गुज़रे, रह गई शर्मिंदगी<br />
<div>
ज़िंदगी क्या हमसे पूछो, ज़िंदगी शर्मिंदगी </div>
<div>
<br /></div>
<div>
सच कहूँ तो याद हैं लेदे के दो ही हालतें</div>
<div>
बेख़ुदी की कज-ख़रामी*, होश की शर्मिंदगी </div>
<div>
<br /></div>
<div>
अब मलामत* का भी कुछ दिल पर असर होता नहीं</div>
<div>
बेहिसी बढ़ने लगी, जाती रही शर्मिंदगी </div>
<div>
<br /></div>
<div>
उम्र-भर की अंजुमन-आराइयो* से क्या मिला</div>
<div>
इब्तदा* की सरख़ुशी, अंजाम की शर्मिंदगी </div>
<div>
<br /></div>
<div>
हर शिकायत पर, वो उसकी बेनियाज़ाना* हँसी</div>
<div>
पूछिए मत, किस तरह हमने सही शर्मिंदगी </div>
<div>
<br /></div>
<div>
ख़ानक़ाही चंद दिन की गोशा-गीरी* और बस</div>
<div>
फिर वही आवारगी है, फिर वही शर्मिंदगी </div>
<div>
<br /></div>
<div>
1- अय्याम-रात-दिन</div>
<div>
2- कज-ख़रामी- लड़खड़ाहट</div>
<div>
3- मलामत--फ़टकार</div>
<div>
4- अंजुमन-आराइयो--सभाएँ आयोजित करना</div>
<div>
5-इब्तदा-प्रारंभ</div>
<div>
6-बेनियाज़ाना--लापरवाह</div>
<div>
7-गोशा-गीरी--एकांत</div>
<div>
<br /></div>
</div>
nishtarhttp://www.blogger.com/profile/17659920481241414228noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1621133300852057199.post-58155850302821396912012-10-29T22:06:00.001-07:002012-10-29T22:06:07.543-07:00मेरे लहू की आग: 'सुरमई धूप में दिन-सा नहीं होने पाता'<a href="http://nishtar-khanqahi.blogspot.com/2012/10/blog-post_1656.html?spref=bl">मेरे लहू की आग: 'सुरमई धूप में दिन-सा नहीं होने पाता'</a>: (110) सुरमई धूप में दिन-सा नहीं होने पाता धुंध वो है कि उजाला नहीं होने पाता देने लगता है कोई ज़हन के दर पर दस्तक नींद में भी तो मैं ...nishtarhttp://www.blogger.com/profile/17659920481241414228noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1621133300852057199.post-45714440212320570952012-10-23T07:49:00.003-07:002012-10-23T07:49:56.423-07:00'सुरमई धूप में दिन-सा नहीं होने पाता'<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
(110)<br />
<br />
सुरमई धूप में दिन-सा नहीं होने पाता<br />
धुंध वो है कि उजाला नहीं होने पाता<br />
<br />
देने लगता है कोई ज़हन के दर पर दस्तक<br />
नींद में भी तो मैं तनहा नहीं होने पाता<br />
<br />
घेर लेती हैं मुझे फिर से अँधेरी रातें<br />
मेरी दुनिया में सवेरा नहीं होने पाता<br />
<br />
छीन लेते हैं उसे भी तो अयादत वाले*<br />
दुख का एक पल भी तो मेरा नहीं होने पाता<br />
<br />
सख़्त*-जानी मेरी क्या चीज़ है हैरत-हैरत<br />
चोट खाता हूँ शकिस्ता नहीं होने पाता<br />
<br />
लाख चाहा है मगर ये दिले-वहशी दुनिया<br />
तेरे हाथों का खिलौना नहीं होने पाता<br />
<br />
1-अयादत वाले*--तीमारदार<br />
2- सख़्त*--कठोरता</div>
nishtarhttp://www.blogger.com/profile/17659920481241414228noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1621133300852057199.post-64020568240508507372012-10-23T07:41:00.003-07:002012-10-23T07:41:32.767-07:00'मुझे अपना तो क्या, मेरा पता देता नहीं कोई'<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
(109)<br />
<br />
मुझे अपना तो क्या, मेरा पता देता नहीं कोई<br />
भटकता हूँ घने वन में, सदा देता नहीं कोई<br />
<br />
बता ऐ शहरे-नाशुक्राँ*, ये क्या तर्ज़-गदाई* है<br />
तलब करते हैं सब, लेकिन दुआ देता नहीं कोई<br />
<br />
यहाँ ज़ालिम जुईफ़ों से सहारे छीन लेते हैं<br />
यहाँ कमज़ोर बाहों को असा* देता नहीं कोई<br />
<br />
ख़ुदा जाने कहाँ होंगे वो मुशाफ़िक़* दामनों वाले<br />
तपिश* सहता हूँ, दामन की हवा देता नहीं कोई<br />
<br />
मेरे माथे के धब्बों पर ये दुनिया तन्ज़ करती है<br />
मगर हाथों में मेरे आइना देता नहीं कोई<br />
<br />
अब अक्सर सोचता हूँ मेरा मर जाना ही बेहतर है<br />
कि बिमारी में ज़िद करके दवा देता नहीं कोई<br />
<br />
1- शहरे-नाशुक्राँ*--एहसान न मानने वालों का शहर<br />
2- तर्ज़-गदाई--भीख लेने का ढंग<br />
3- असा*--छड़ी<br />
4- मुशाफ़िक़*--प्रेमपूर्ण<br />
5- तपिश*तपन</div>
nishtarhttp://www.blogger.com/profile/17659920481241414228noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1621133300852057199.post-12185608476578106472012-10-22T07:01:00.001-07:002012-10-22T07:01:45.029-07:00गोशा-ए-उज़लत* में चुप बैठे हुए अर्सा हुआ<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
(108)<br />
<br />
गोशा-ए-उज़लत* में चुप बैठे हुए अर्सा हुआ<br />
शहरे-हमददाँ! तुझे देखे हुए अर्सा हुआ<br />
<br />
है ख़याले-दोस्त ही बाक़ी, न यादे-वस्ले-दोस्त<br />
हिज़्र की रुत को भी अब भूले हुए अर्सा हुआ<br />
<br />
ज़िदंगी में क्या कहूँ, काटे हैं कितने रतजगे<br />
मुख़्तसर ये है कि अब जागे हुए अर्सा हुआ<br />
<br />
दिन को तहख़ाने में जलना, शब को बाहर ताक़ में<br />
इस दिए को दोस्तों! जलते हुए अर्सा हुआ<br />
<br />
अब ये पत्थर चोट खाकर भी सदा देता नहीं<br />
चुप हुए मुद्दत हुई बिखरे हुए अर्सा हुआ<br />
<br />
1- गोशा-ए-उज़लत--एकांत</div>
nishtarhttp://www.blogger.com/profile/17659920481241414228noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1621133300852057199.post-37089629288926333662012-10-22T06:50:00.001-07:002012-10-22T06:50:12.984-07:00'सुबह का सूरज उगा, फिर क्या हुआ मत पूछिए'<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<br />
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="http://2.bp.blogspot.com/-1vXJG6T26BM/UIVOxiK_oAI/AAAAAAAAAE8/C51VmSirWEM/s1600/dew.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="231" src="http://2.bp.blogspot.com/-1vXJG6T26BM/UIVOxiK_oAI/AAAAAAAAAE8/C51VmSirWEM/s320/dew.jpg" width="320" /></a></div>
<br />
(107)<br />
<br />
सुबह का सूरज उगा, फिर क्या हुआ मत पूछिए<br />
ओस के क़तरों से सागर का पता मत पूछिए<br />
<br />
बस सफ़र, पैहम* सफ़र, दायम,* मुसलसल बेक़याम*<br />
चलते रहिए, चलते रहिए, फ़ासला मत पूछिए<br />
<br />
ज़िंदगी का रूप यकसाँ*, तजरुबे सबके अलग<br />
इस समर* का भूलकर भी ज़ायक़ा मत पूछिए<br />
<br />
मान भी लीजे नमूना ख़स्ता-हाली* को मेरी<br />
मुझसे अपने शहर की आबो-हवा मत पूछिए<br />
<div>
<br /></div>
<br />
क्या ख़बर है कौन किस अंदाज़, किस आलम में हो<br />
दोस्तों से उनके मसकन* का पता मत पूछिए<br />
<br />
1-निरंतर<br />
2-सदैव<br />
3-बिना रुके<br />
4-समान,एक जैसा<br />
5-फल<br />
6-दुर्दशा<br />
7-घर</div>
nishtarhttp://www.blogger.com/profile/17659920481241414228noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1621133300852057199.post-76481230458412541402012-10-13T07:33:00.000-07:002012-10-13T07:35:20.234-07:00क्यों हर तरफ़ धुआँ ही धुआँ है बता मुझे<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
(106)<br />
<br />
क्यों हर तरफ़ धुआँ ही धुआँ है बता मुझे<br />
क्या ये ही शहरे-शोला-रुख़ाँ* है बता मुझे<br />
<br />
वो फ़स्ल कौन-सी, जिसे सींचते हैं अश्क<br />
दरिया ये किस जहत* में रवाँ है बता मुझे<br />
<br />
देता नहीं है कोई यहाँ उम्रभर का साथ<br />
कल तक जो हमसफ़र था, कहाँ है बता मुझे<br />
<br />
क्यों कारोबारे-शौक़ से उकता गए हैं लोग<br />
दिल के सिवा जो इसमें ज़ियाँ* है बता मुझे<br />
<br />
तू मेरे साथ-साथ रहा है, सबूत दे<br />
किस रास्ते पे मेरा मकाँ है बता मुझे<br />
<br />
जब मैं नहीं तो मुझको मेरी शोहरतों से क्या<br />
किस काम का ये नामो-निशाँ है बता मुझे<br />
<br />
1- शहरे-शोला-रुख़ाँ*-सुंदर चेहरों का शहर<br />
2- जहत*--दिशा<br />
3- ज़ियाँ*--हानि</div>
nishtarhttp://www.blogger.com/profile/17659920481241414228noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1621133300852057199.post-41305640841143465662012-10-13T07:25:00.001-07:002012-10-13T07:25:48.957-07:00शहर में तेरे वो भी मौसम ऐ दिल आने वाले हैं<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
(105)<br />
<br />
शहर में तेरे वो भी मौसम ऐ दिल आने वाले हैं<br />
आन मिले के रिश्तों को भी लोग भुलाने वाले हैं<br />
<br />
सोच के अपने ख़ालीपन को,बैन न कर हलकान न हो<br />
ख़ुश्क नदी हम तेरे किनारे नीर बहाने वाले हैं<br />
<br />
आँखों में खामोश हुए अब शोर मचाते आँसू भी<br />
हिज़्र की शब, बर्फ़ीली रुत, सन्नाटे छाने वाले हैं<br />
<br />
आना-जाना लगा रहेगा, तेरी बज़्म सजी रहे<br />
कितने यार सिधार गए, अब हम भी जाने वाले हैं<br />
<br />
सोच रहे थे बंद हवा की दावत दें तो कैसे दें<br />
हमने देखा कुछ दीवाने दीप जलाने वाले हैं<br />
<br />
बीत गया बरसात का मौसम और उन्हें अब लिखूँ क्या<br />
जाड़ों के मेहमान परिंदे, लौट के आने वाले हैं</div>
nishtarhttp://www.blogger.com/profile/17659920481241414228noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1621133300852057199.post-50283257469007282732012-09-05T13:02:00.000-07:002012-09-05T13:02:13.108-07:00अब के भी यह रुत दिल को दुखाते हुए गुज़री<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
(104)<br />
<br />
अब के भी यह रुत दिल को दुखाते हुए गुज़री<br />
गुज़री है, मगर नीर बहाते हुए गुज़री<br />
<br />
जीने का ये अंदाज़ तो देखो कि मेरी उम्र<br />
जीने के लिए ख़ुद को मनाते हुए गुज़री<br />
<br />
काजल-सा बरसता था फ़िज़ा से कि मेरी रात<br />
बे-तेल के दीपक को जलाते हुए गुज़री<br />
<br />
गुज़री भी तो किस क़हर से गुज़री है ये पुरवा<br />
सोए हुए ज़ख़्मों को जगाते हुए गुज़री<br />
<br />
तरबीर ना मिल पाई तो क्या दुख कि शबे-ग़म<br />
कुछ ख़्वाब तो पलकों पे सजाते हुए गुज़री<br />
<br />
नाकाम ये कोशिश थी मगर हिज़्र की हर शब<br />
खुद को, कभी दुनिया को भुलाते हुए गुज़री<br />
1- तरबीर--स्वप्न-फल</div>
nishtarhttp://www.blogger.com/profile/17659920481241414228noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1621133300852057199.post-69417863656533516912012-09-05T09:31:00.001-07:002012-09-05T09:34:19.733-07:00अश्क पलकों पे उठा ले आऊँ<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
(103)<br />
अश्क पलकों पे उठा ले आऊँ<br />
आँख उर्यां* है, क़बा* ले आऊँ<br />
<br />
अब तो इस दश्त में दम घुटता है<br />
शहर से उसके, हवा ले आऊँ<br />
<br />
तुम भी अब ताज़ा सनम को पूजो<br />
मैं भी इक और ख़ुदा ले आऊँ<br />
<br />
वो भी इस रात अकेला होगा<br />
अब उसे घर से बुला ले आऊँ<br />
<br />
लुट चुका सारा असासा* दिल का<br />
जान ही अब तो बचा ले आऊँ<br />
<br />
रोज़ इस सोच में सूरज निकला<br />
धूप से पहले घटा ले आऊँ<br />
1- उर्यां*--नग्न<br />
2- क़बा*--वस्त्र<br />
3- असासा*--पूँजी</div>
nishtarhttp://www.blogger.com/profile/17659920481241414228noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1621133300852057199.post-11587366635078944362012-09-05T03:10:00.005-07:002012-09-05T03:10:58.570-07:00लुटा जो नगर था वफ़ा नाम का<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
(102)<br />
लुटा जो नगर था वफ़ा नाम का<br />
निशाँ तक ना बाक़ी रहा नाम का<br />
<br />
भरी दोपहर में कहाँ गुम हुआ<br />
यहाँ था जो इक बुत ख़ुदा नाम का<br />
<br />
हवा ले उड़ी, कुछ नमी खा गई<br />
वरक़ था कि बंजर हुआ नाम का<br />
<br />
कहाँ तन से दस्ते-दुआ* कट गिरे<br />
सहारा भी टूटा जो था नाम का<br />
<br />
रगों में नहीं कुछ वजुज़* कर्ब* के<br />
कहाँ है वो पल इन्तहा नाम का<br />
<br />
1-दस्ते-दुआ*-प्रार्थना करने वाले हाथ<br />
2- वजुज़*-सिवाय<br />
3- कर्ब*-पीड़ा</div>
nishtarhttp://www.blogger.com/profile/17659920481241414228noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1621133300852057199.post-75385853860757167552012-09-02T13:04:00.001-07:002012-09-02T13:04:59.572-07:00चेहरा सबका याद है लेकिन रिश्ता पीछे छूट गया<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<br />
(101)<br />
आगे पहुँची जल की धारा बजरा पीछे छूट गया<br />
रस्ता छोड़ सवारों को मैं प्यादा पीछे छूट गया<br />
<br />
ये बस्ती कौन-सी बस्ती है, आके कहाँ बस ठहर गई<br />
चाहा था जिस धाम रुकें, वो क़स्बा पीछे छूट गया<br />
<br />
आगे-आगे लंबी डगर है रेत-भरे मैदानों की<br />
जिस तट इक पल ठहरे थे, वह दरिया पीछे छूट गया<br />
<br />
बैठे हैं सैलानी सारे,पतझड़ है विश्वासों का<br />
मंदिर छूटा, गिरजा छूटा, काबा पीछे छूट गया<br />
<br />
कितने कुछ थे जीवन-साथी, कितने कुछ थे लहू-शरीक<br />
चेहरा सबका याद है लेकिन रिश्ता पीछे छूट गया<br />
<br />
</div>
nishtarhttp://www.blogger.com/profile/17659920481241414228noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1621133300852057199.post-84327732287153197822012-08-01T01:12:00.001-07:002012-08-01T01:12:59.623-07:00न चलने दूँ लहू में आँधियाँ अब<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
(100)<br />
न चलने दूँ लहू में आँधियाँ अब<br />
हुई है गोद की बच्ची जवाँ अब<br />
<br />
उदासी से भरे गुमसुम घरों में <br />
तमाशा बन गईं परछाईंयाँ अब<br />
<br />
भरोसा किसको है पैरों पे अपने<br />
ज़रूरी हो गईं बैसाखियाँ अब<br />
<br />
बज़ाहिर पुर-सकूँ* शहरे-हवस* में<br />
लड़ा करती हैं बाहम* कुर्सियाँ अब<br />
<br />
बढ़ा क़र्ज़ा मगर खाते में अपने<br />
लिखी जाने लगीं खुशहालियाँ अब<br />
<br />
ज़मीनें बाँझ होती जा रही हैं<br />
लहू पीने लगीं आबादियाँ अब<br />
<br />
1- पुर-सकूँ*-शांत<br />
2-शहरे-हवस*-स्वार्थों का नगर<br />
3-बाहम*-परस्पर</div>nishtarhttp://www.blogger.com/profile/17659920481241414228noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1621133300852057199.post-20084713251409709172012-07-11T01:18:00.000-07:002012-08-01T01:12:37.943-07:00भूलकर भी अब न उस बुत को सरापा* सोचना<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
(99)<br />
भूलकर भी अब न उस बुत को सरापा* सोचना<br />
<div>
आइने के सामने अपना ही चेहरा सोचना</div>
<div>
<br /></div>
<div>
गुफ़्तगू में उसकी मर्ज़ी के मुताबिक़ बोलना</div>
<div>
और तनहाई में इस ज़ालिम का रूतबा सोचना</div>
<div>
<br /></div>
<div>
रू-ब-रू जब तक रहें अपनों से रहना बदगुमाँ</div>
<div>
जब बिछुड़ जाएँ तो अपनों को प्यारा सोचना</div>
<div>
<br /></div>
<div>
तिश्ना-लब* सोना मगर ख़्वाबों में दरिया देखना</div>
<div>
दरमियाँ सागर के रहना, खुद को प्यासा सोचना</div>
<div>
<br /></div>
<div>
आदमी और अंजुमन* के बीच निस्बत* ढूँढ़ना</div>
<div>
भीड़ में ख़ामोश रहना, घर में क्या-क्या सोचना</div>
<div>
<br /></div>
<div>
बैठ जाना बूँद पड़ते ही बताशे की तरह</div>
<div>
फिर भी अपने आपको पत्थर का टुकड़ा सोचना</div>
<div>
<br /></div>
<div>
1- सर से पाँव तक,छवि</div>
<div>
2-प्यासा</div>
<div>
3-सभा</div>
<div>
4-संबंध</div>
</div>nishtarhttp://www.blogger.com/profile/17659920481241414228noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-1621133300852057199.post-39444311954118993432012-06-06T23:43:00.001-07:002012-06-06T23:43:54.284-07:00आदमी को बेवतन, घर को जज़ीरा मान लूँ<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
(98)<br />
आदमी को बेवतन, घर को जज़ीरा मान लूँ<br />
क्यों न अब ख़ुद को भी इस मंज़र का हिस्सा मान लूँ<br />
<br />
क़हक़हों की गूँज से लरज़ा न दूँ दीवारों-दर<br />
क्यों न हर ज़हमत* को अब पल भर का क़िस्सा मान लूँ<br />
<br />
निस्बतें* जो कल बनेंगी उनका अंदाज़ा करूँ<br />
टूटते रिश्तों को मौसम का तक़ाज़ा मान लूँ<br />
<br />
वो ही तेवर के नियाज़ी थे, वही अंदाज़ों-रंग<br />
क्यों न हर चेहरे को अब तेरा ही चेहरा मान लूँ<br />
<br />
हिल गई बुनियाद लेकिन बामो-दर टूटे नहीं<br />
वक़्त से पहले ही क्यों दिल को शकिस्ता* मान लूँ<br />
<br />
क्या ख़बर वो बस्तियाँ, वो लोग अब बाक़ी न हों<br />
रास्ते से लौट जाऊँ दिल का कहना मान लूँ<br />
1- कष्ट<br />
2-रिश्ते<br />
3-खंडित<br />
<br /></div>nishtarhttp://www.blogger.com/profile/17659920481241414228noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1621133300852057199.post-9102926895078341162012-06-06T23:31:00.002-07:002012-06-06T23:32:29.438-07:00तू मेरी बेहिसाब माँ<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div>
(97)</div>
वही हूँ मैं, वही ज़मीं, वही है माहताब माँ<br />
<div>
बस एक गुल बहिश्त* का हुआ है ख़्वाब-ख़्वाब मां</div>
<div>
<br /></div>
<div>
मेरी नज़र में आज भी खिली है कहकशाँ-सी* तू</div>
<div>
मैं यक़-क़दह* लहू तेरा, तू मेरी बेहिसाब माँ</div>
<div>
<br /></div>
<div>
न सोचना कि हक़ तेरा अदा न मुझसे हो सका</div>
<div>
कि तेरे-मेरे दरमियाँ न था कोई हिसाब माँ</div>
<div>
<br /></div>
<div>
सफ़ेद हो चला हूँ अब तेरे कफ़न के रंग-सा</div>
<div>
कभी उठा के देख तो यह क़ब्र की नक़ाब माँ</div>
<div>
<br /></div>
<div>
रखा तो होगा जेब में उसी तरह क़लम तेरा </div>
<div>
कभी तो भेज ख़त मुझे, कभी तो भेज जवाब माँ</div>
<div>
<br /></div>
<div>
1- स्वर्ग</div>
<div>
2- आकाश गंगा</div>
<div>
3- प्याला भर</div>
</div>nishtarhttp://www.blogger.com/profile/17659920481241414228noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1621133300852057199.post-89613291485383984902012-05-06T11:24:00.001-07:002012-05-06T11:24:27.855-07:00टूटकर भी आइना अक्स-आशना है जाने-मन<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
टूटकर भी आइना अक्स-आशना* है जाने-मन<div>
इस तरह जीने का किसको हौसला है जाने-मन</div>
<div>
<br /></div>
<div>
कुछ-न-कुछ तो है तअल्लुक़ अब वो जुज़वन* ही सही</div>
<div>
सबका सब तो कौन किसका हो सका है जाने-मन</div>
<div>
<br /></div>
<div>
ज़िंदगी भर कौन किसका साथ देता है यहाँ</div>
<div>
एक लम्हे की वफ़ा भी तो वफ़ा है जाने-मन</div>
<div>
<br /></div>
<div>
लफ़्ज़ पर विश्वास करना भी है लाचारी मेरी</div>
<div>
कौन किसके अंदरूँ* को जानता है जाने-मन</div>
<div>
<br /></div>
<div>
अब असर-अंदाज़* कोई सानेहा होता नहीं</div>
<div>
अब कि दिल सीने में पत्थर हो चुका है जाने-मन</div>
<div>
<br /></div>
<div>
1-प्रतिबिंब से जुड़ा हुआ</div>
<div>
2-आंशिक</div>
<div>
3-भीतर, मनःस्थिति</div>
<div>
4-असर करने वाला</div>
<div>
<br /></div>
<div>
<br /></div>
</div>nishtarhttp://www.blogger.com/profile/17659920481241414228noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1621133300852057199.post-15677958628808403202012-03-21T00:18:00.001-07:002012-03-21T00:20:44.038-07:00'घर के रोशनदानों में अब काले पर्दे लटका दे'<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">(95)<br />
<br />
घर के रोशनदानों में अब काले पर्दे लटका दे<br />
रातों के मटियालेपन को थोड़ा और अँधेरा दे<br />
<br />
दिन में सपने देखने वाले रस्ता-रस्ता बिखरे हैं<br />
प्यासे दिल को दे न तमन्ना, दे तो साथ वसीला दे<br />
<br />
शहर से जब भी लौट के आऊँ, देखूँ, सोचूँ, हैरत हो<br />
सीधा-सादा बरगद अब भी धूप सहे और साया दे<br />
<br />
लौटा तो अख़बार पुराना, बोला मेरी तलावत* कर<br />
कमरे की दीवार का धब्बा, चीख़ा मुझको चेहरा दे<br />
<br />
शहर की छीना-झपटी में सब अपने लोग मुक़ाबिल हैं<br />
आलम अफ़रा-तफ़री का है, कौन किसी को मौक़ा दे<br />
<br />
अक़्लो-हुनर* का मोल नहीं है, बस्ती में बंजारों की<br />
मुझसे मेरी दानिश ले ले, लेकिन मौला पैसा दे<br />
<br />
1- तलावत--अध्ययन<br />
2- अक़्लो-हुनर--बुद्धि<br />
<br />
<br />
</div>nishtarhttp://www.blogger.com/profile/17659920481241414228noreply@blogger.com2