सोमवार, 3 अक्तूबर 2011

'अच्छे दिनों की आस में दीवारों-दर हैं चुप'

(71)
सामान दिलदही* का न राहत घरों में है
दिन-रात का सफ़र है, सकूनत* घरों में है

दस्तक पे दोस्तों के भी खुलते नहीं हैं दर
हर वक़्त इक अजीब-सी दहशत घरों में है

क्या फिर कहीं पे कोई बड़ा हादिसा हुआ
क्यों आज इतनी भीड़ इबादत-घरों में है

बुनियाद इख़्तलाफ़* की कुछ भी नहीं मगर
मौजूद बेसबब-सी रक़ाबत* घरों में है

अच्छे दिनों की आस में दीवारों-दर हैं चुप
सड़कों पे कहक़हे हैं, हक़ीक़त घरों में है

जंगल में जा बसेंगे अगर आफ़ियत मिले
अब तक यक़ीन था कि हिफ़ाज़त घरों में है

1- दिलदही* --मन-बहलाव
2- सकूनत*आवास
3- इख़्तलाफ़*--मतभेद
4- रक़ाबत*शत्रुता

'वक्त ने मोहलत न दी वरना हमें मुश्किल न था'

(70)
ज़िंदगी को ज़र-ब-कफ़*, ज़र-फ़ाम* करना सीखते
कौन था वो, किससे हम आराम करना सीखते

वक्त ने मोहलत न दी वरना हमें मुश्किल न था
सरफिरी शामों को नज़रे-जाम करना सीखते

सीख लेते काश हम भी कोई कारे-सूद-मंद*
शेर-गोई छोड़ देते, काम करना सीखते

ख़ुद-ब-ख़ुद तय हो गए शामों-सहर अच्छा था मैं
सुबह करना सीख लेते, शाम करना सीखते

क़द्र है जब शोरो-ग़ोग़ा* की तो हज़रत आप भई
गीत क्यों गाते रहे, कोहराम करना सीखते

1- ज़र--कफ़--मुट्ठियों में सोना
2- ज़र-फ़ाम*--सोने जैसा रंग
3- कारे-सूद-मंद*--लाभदायक
4- शोरो-ग़ोग़ा*--शोर-शराबा

'नशा कहाँ है वो ख़्वाब जैसा कि आज तक थी सबब से जिसके'

(69)
नदी के सय्याल* रास्ते से लहू में चुपचाप हल हुआ दिन
ग़रूब* के वक़्त आस्माँ के किनारे-ज़ेरी* में खूँ-शुदा* दिन

मथी हुई मिट्टियों के अंदर छुपी हुई है शबीह* मेरी
मैं एक से दूसरी तरफ़ के सफ़र में हूँ दरदियान का दिन

तुम्हें भी तन्हाइयों में अपनी शरीक करना कहाँ था मुमकिन
कि सर्द बिस्तर पे रात मेरे बदन-बरहना* पड़ा रहा दिन

नशा कहाँ है वो ख़्वाब जैसा कि आज तक थी सबब से जिसके
घरों में काफ़ूर जैसी शामें, सफ़र में हलका सहाब-सा दिन

उदास कमरे में अपने तन्हा, बख़ील* लम्हों से लौ लगाते
इक और हमने गुज़ार दी शब, इक और हमने गँवा दिया दिन

1- सय्याल*--तरल
2- ग़रूब* --सूर्यास्त
3- किनारे-ज़ेरी*--निचले किनारे
4- खूँ-शुदा* --खून में परिवर्तित
5- शबीह*-- सूरत
6- बदन-बरहना* --नग्न
7- बख़ील*--कंजूस

'ऐ जंगल की बेमानी चुप, शहरों के दीवाने शोर'

(68)
ऐ-जाँ! कब तक क़ता* न होता, झूठा-सच्चा साथ तेरा
कमज़ोर पतंग बारीक हुआ, बिलाख़िर छूटा साथ तेरा

कैसे मुमकिन तुझसे बचना, चारों खूँट ऐ बहती हवा
सहरा-सहरा संगत तेरी, रस्ता-रस्ता साथ तेरा

उड़ते जाते वक़्त बता अनजाने पन का भेद है क्या
मेरी तबीअत ज्यों की त्यों और बदला-बदला साथ तेरा

ऐ जंगल की बेमानी चुप, शहरों के दीवाने शोर
बेकार गिला तन्हाई का ख़ुद हमने छोड़ा साथ तेरा

इक रूख़ तेरा दिलकश इतना, इक रूख़ नामरग़ूब* बहुत
लेकिन मेरी आदत ठहरा, कड़ुआ-मीठा साथ तेरा

1- क़ता* --विच्छेद
2- नामरग़ूब* --अस्वीकार्य