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तपिश से आग की पानी बचा तो होगा ही
बदन को देख कहीं आबला* तो होगा ही
ये बर्गे-सब्ज़* भी आख़िर ज़मीं का हिस्सा है
जो कुछ नहीं है, यहाँ हादिसा तो होगा ही
अभी से ख़ौफ़-सा क्या है की क़ुर्ब* का ये पल
जुदा तो होना है आख़िर, जुदा तो होगा ही
बिछुड़ के ख़ुद से चला था कि मर गया इक शख़्स
नज़र से गर नहीं देखा, सुना तो होगा ही
हवा के रूख़ को रवादारियों* का पर्दा क्या?
वो आज दोस्त है, इकदिन ख़फ़ा तो होगा ही।
1-आबला*--फफोला
2-बर्गे-सब्ज़*--हरा पत्ता
3-क़ुर्ब*--मिलन
4-रवादारियों*--रख-रखाव
तपिश से आग की पानी बचा तो होगा ही
बदन को देख कहीं आबला* तो होगा ही
ये बर्गे-सब्ज़* भी आख़िर ज़मीं का हिस्सा है
जो कुछ नहीं है, यहाँ हादिसा तो होगा ही
अभी से ख़ौफ़-सा क्या है की क़ुर्ब* का ये पल
जुदा तो होना है आख़िर, जुदा तो होगा ही
बिछुड़ के ख़ुद से चला था कि मर गया इक शख़्स
नज़र से गर नहीं देखा, सुना तो होगा ही
हवा के रूख़ को रवादारियों* का पर्दा क्या?
वो आज दोस्त है, इकदिन ख़फ़ा तो होगा ही।
1-आबला*--फफोला
2-बर्गे-सब्ज़*--हरा पत्ता
3-क़ुर्ब*--मिलन
4-रवादारियों*--रख-रखाव