शुक्रवार, 5 अप्रैल 2013

"मीर" कोई था "मीरा" कोई लेकिन उनकी बात अलग

118)

छोड़ो मोह! यहाँ तो मन को बेकल बनना पड़ता है
मस्तों के मयख़ाने को भी मक़तल बनना पड़ता है

सारे जग की प्यास बुझाना, इतना आसाँ काम है क्या?
पानी को भी भाप में ढलकर बादल बनना पड़ता है

जलते दिए को लौ ही जाने उसकी आँखें जानें क्या?
कैसी-कैसी झेल के बिपता, काजल बनना पड़ता है

"मीर" कोई था "मीरा" कोई लेकिन  उनकी बात अलग
इश्क़ न करना, इश्क़ में प्यारे पागल बनना पड़ता है

शहर नहीं थे, गाँव से पहले जंगल  बनना पड़ता है

"निश्तर" साहब! हमसे पूछो, हमने ज़र्बे झेली हैं
घायल मन की पीड़ समझने घायल बनना पड़ता है

मक़तल--वधशाला
ज़र्बे - चोटें

"मेरे लहू की आग" इस ग़ज़ल शीर्षक की ये आखिरी ग़ज़ल थी।

'तुम्हारे बाद भी रातें सजी हुई हैं यहाँ'

117)

तुम्हारे बाद भी रातें सजी हुई हैं यहाँ
जले हैं दीप, पर आँखें बुझी हुई हैं यहाँ

तेरी विदाई को अर्सा गुज़र गया है मगर
इसी बेक़ुए पे घड़ियाँ रूकी हुई हैं यहाँ

चलो शुरू-ए-सफ़र अब नई जगह से करें
बड़ी तवील क़तारें लगी हुई हैं यहाँ

गुज़र गई शबे-वादा मगर उसी दिन से
तुम्हारी आस में रातें थमी हुई हैं यहाँ

चले तो आए हो महफ़िल में 'ख़ानक़ाही' तुम
मगर तमाम निशस्तें भरी हुई हैं यहाँ

बेक़ूए- स्थान
तवील- लंबी

'भारी था जिसका बोझ वो लम्हा लिए फिरा'

(116)

भारी था जिसका बोझ वो लम्हा लिए फिरा
सर पर मैं इक पहाड़ को तन्हा लिए फिरा

आँखें थीं बंद देखने वाला कोई ना था
ऐसे में दिल का दाग़! तमन्ना लिए फिरा

इस फ़िक्र में कि चेहरा-ए-मौजूँ कोई मिले
होठों पे मैं ख़याल का बोसा लिए फिरा

समझा नहीं कि ख़िल्क़ को रास आ गई है धूप
नाहक़ मैं इस दयार में साया लिए फिरा

नादाँ हूँ दिल पे हर्फ़्र-वफ़ा लिख के शहर-शहर
मैं यादगारे-एहदे-गुज़िश्ता लिए फिरा

1-ख़िल्सा-संसार
2-नाहक़--व्यर्थ
3-यादगारे-एहदे-गुज़िश्ता -बीते दिनों की याद

' हवाए-नग़मा* मेरे जह्न के अंदर तो आ'

(115)

ऐ हवाए-नग़मा* मेरे जह्न के अंदर तो आ
देखना है तुझको जलते शहर का मंज़र  तो आ

संगरेजों* की तरह बिखरी हुई है कहकशाँ
मेरे सीने से निकल, ऐ आस्माँ बाहर तो आ

ले न यों कम-फ़ुर्सती* से मुद्दआ*, बे-रग़बती*
अब अगर अक्सर नहीं आता न आ, कमतर तो आ

अब हवा के सामने सीना-सियर* यों ही न हो
दिल को अपने दे सके फ़ौलाद का पैकर तो आ

कुछ-न-कुछ बाक़ी तो होगा, खुदफ़रोशी* से बदन
बर्फ़ अब गिरने को है ऐ जाँ तहे-चादर* तो आ

1- ऐ हवाए-नग़मा*--गीत लाने वाली हवा
2- संगरेजों--पत्थर के टुकड़ों
3- कहकशाँ--आकाश गंगा
4- कम-फ़ुर्सती--व्यवस्तता
5-  मुद्दआ*-अर्थ
6-  बे-रग़बती*--अलगाव
7- सीना-सियर*--आमने-सामने
8- खुदफ़रोशी*--स्वयं को बेचना
9-तहे-चादर*--चादर के नीचे