बुधवार, 19 अक्तूबर 2011

'अब तमाशा देखने वालों में हमसाया भी है'

(79)
इल्म किसको था कि तरसीले-हवा* रूक जाएगी
अगले मौसम तक मेरी नशवो-नुमा* रूक जाएगी

तू ही क्यों नादिम* है इतनी मेरे घर की आबरू
किसके सर पर ऐसी आँधी में रिदा* रुक जाएगी

अब तमाशा देखने वालों में हमसाया भी है
टूटती छत मेरे चिल्लाने से क्या रूक जाएगी

कल न होगा कोई इस बस्ती में मेरे मंतज़िर
कल मेरे तलुओं ही में आवाज़े-पा* रुक जाएगी

क्या तहफ़्फ़ज़* दे सकेगी मुझको बज़-ए-एहतियात
क्या दरीचे मूँद लेने से बला रुक जाएगी

1- तरसीले-हवा*-- हवा की उपलब्धि
2- नशवो-नुमा*--बढत
3- नादिम*--लज्जित
4- रिदा*--चादर
5- आवाज़े-पा*--पदचाप
6- तहफ़्फ़ज़*--सुरक्षा
7- बज़-ए-एहतियात--सावधानी का अंदाज़

'रूख पे भूली हुई पहचान का डर तो आया'

(78)
रूख पे भूली हुई पहचान का डर तो आया
कम-से-कम भीड़ में इक शख़्स नज़र तो आया

मेरे सीने की तरफ़ खुद मेरे नाख़ुन लपके
आखि़र इस ज़ख़्म की टहनी पे समर तो आया

कट गया मुझसे मेरी ज़ात का रिश्ता लेकिन
मुझको इस शहर में जीने का हुनर तो आया

कुछ तो सोए हुए एहसास के बाज़ू थिरके
पाँव से उठके भँवर ता-ब-कमर तो आया

तन की मिट्टी में उगा ज़हर का पौधा चुपचाप
मुझमें बदली हुई दुनिया का असर तो आया

1- समर --फल
2- ता-ब-कमर--कमर तक