शुक्रवार, 22 फ़रवरी 2013

"नाव बहाकर पानी में, मत काग़ज़ की तौक़ीर* बहा"

(112)

सोज़े-दरूँ* से परबत पिघले, बस्ती-बस्ती नीर बहा
मेरी तो औक़ात ही क्या है, सैले-बला में 'मीर' बहा

तेज़ हवा, तूफ़ानी बारिश, बरगद धरती छोड़ गए
अब के इस तूफ़ाने-गज़ब में कैसा-कैसा वीर बहा

हिज्र की रूत में बाल बिखेरे मैं भी घूमूँ, तू भी अब
तन्हा बैठ के आँसू-आँसू काजल की तहरीर बहा

सागर-तट पर बैठ के पहरों, मिलने वाली बात कहाँ
लाख हवा की लहरों पर आवाज़ बहा, तस्वीर बहा

नादाँ बालक! तू क्या जाने मसरफ़* है किस चीज़ का क्या
नाव बहाकर पानी में, मत काग़ज़ की तौक़ीर* बहा

1-सोज़े-दरूँ*-- भीतर की ज्वाला
2-मसरफ़*--उपयोग
3-तौक़ीर*--सम्मान, महत्व

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