रविवार, 18 मार्च 2012

मेरे लहू की आग: 'फ़र्ज़ी सुख पर करके भरोसा खुद को हँसाया दिन-दिन भ...

मेरे लहू की आग: 'फ़र्ज़ी सुख पर करके भरोसा खुद को हँसाया दिन-दिन भ...: (90) फ़िक्रे-सुख़न* में रातें काँटीं, ख़ून जलाया दिन-दिन भर शब को उड़ा जो छत से कबूतर,हाथ ना आया दिन-दिन भर शाम हुई तो देखा अक्सर नक़्श...

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