रविवार, 18 मार्च 2012

मेरे लहू की आग: 'जागती आँखें देख के मेरी वापस सपना चला गया'

मेरे लहू की आग: 'जागती आँखें देख के मेरी वापस सपना चला गया': (91) जागती आँखें देख के मेरी वापस सपना चला गया रेत नहाने वाले पंछी सावन सूखा चला गया भीगी घास पे गुमसुम बैठा सोच रहा हूँ शाम-ढले जेठ क...

2 टिप्‍पणियां:

  1. आज आपके ब्लॉग पर बहुत दिनों बाद आना हुआ. अल्प कालीन व्यस्तता के चलते मैं चाह कर भी आपकी रचनाएँ नहीं पढ़ पाया. व्यस्तता अभी बनी हुई है लेकिन मात्रा कम हो गयी है...:-)

    बेहतरीन शेर...बधाई
    नीरज

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