रविवार, 9 अक्तूबर 2011

'देखा नहीं देखे हुए मंज़र के सिवा कुछ'

(73)
देखा नहीं देखे हुए मंज़र के सिवा कुछ
हासिल न हुआ सैरे-मुकर्रर* के सिवा कुछ

किस हाल में उस शोख़ से वाबस्ता हुआ दिल
सौगात में देने को नहीं सर के सिवा कुछ

क्यों गर्द-सी उड़ती है ये हर लम्हा रगों में
क्या जिस्म के अंदर नहीं सरसर* के सिवा कुछ

फूलों से बदन डूबते देखे गए हर बार
इस बहर* में तैरा नहीं पत्थर के सिवा कुछ

करते भी तलब क्या कि यहाँ दस्ते अता* में
देने को न था जिन्से-मयस्सर* के सिवा कुछ

1- सैरे-मुकर्रर*--एक ही स्थान पर दुबारा
2- उपहार
3-सरसर*--आँधी
4-बहर*--सागर
5-दस्ते अता*--दया का हाथ
6-जिन्से-मयस्सर*--पहले से प्राप्त वस्तु

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