मंगलवार, 23 अक्तूबर 2012

'सुरमई धूप में दिन-सा नहीं होने पाता'

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सुरमई धूप में दिन-सा नहीं होने पाता
धुंध वो है कि उजाला नहीं होने पाता

देने लगता है कोई ज़हन के दर पर दस्तक
नींद में भी तो मैं तनहा नहीं होने पाता

घेर लेती हैं मुझे फिर से अँधेरी रातें
मेरी दुनिया में सवेरा नहीं होने पाता

छीन लेते हैं उसे भी तो अयादत वाले*
दुख का एक पल भी  तो मेरा नहीं होने पाता

सख़्त*-जानी मेरी क्या चीज़ है हैरत-हैरत
चोट खाता हूँ शकिस्ता नहीं होने पाता

लाख चाहा है मगर ये दिले-वहशी दुनिया
तेरे हाथों का खिलौना नहीं होने पाता

1-अयादत वाले*--तीमारदार
2- सख़्त*--कठोरता

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