सोमवार, 26 सितंबर 2011

'गुमशुदा अक्स* को आईने में लाकर रख लूँ'


(59)
गुमशुदा अक्स* को आईने में लाकर रख लूँ
मै भी पत्थर में कोई फूल उगाकर रख लूँ

कम नज़र* मैं लहूँ, तहे ज़ात की दोहरी-तिहरी
नार-साई* मैं तुझे दोस्त बनाकर रख लूँ

अब तो ऐसा भी नहीं छोड़ ही जाए कोई शाम
याद ऐसी, जिसे सीने से लगाकर रख लूँ

सर्द रातों में कभी जिससे तपिश* मिलती थी
अब वो अंगारा हथेली पे उठाकर रख लूँ

विस्फ़-शब* आएगा इक शख़्स बुझाने वाला
ताक़े-दिल तुझमें कोई शमा जलाकर रख लूँ

मुझसे वाबस्ता है अब तक वही कातिल चेहरा
जिंदगी! काश तुझे ख़ुद से बचाकर रख लूँ

1- अक्स*--बिंब
2- कम नज़र*--कम समझ वाला
3- नार-साई*--यथार्थ तक न पहुंच पाने की स्थिति
4-तपिश* --गर्मी
5-विस्फ़-शब*--आधी रात

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