शनिवार, 10 सितंबर 2011

'वो इक लम्हा वहशत वाला'

(52)
क्यों साथ में अपने लेकर आया वो इक लम्हा वहशत वाला
शहरों की ग़हमा-ग़हमी में, मैं इस क़स्ताबी फ़ितरत* वाला

जीस्त* मुहज़्ज़ब* बूढ़े में इक पागल गोद की नन्ही बच्ची को
पूरी औरत का पैकर देकर चाहे लम्हा लज़्ज़त* वाला

रात हवाले से अपने तेरे, क्या कुछ मैंने सोचा मसलन
वाज़ेह* खुद को कब कर पाया है सबसे बड़ा वो क़ुदरत वाला

कल उन आँखों से बरसा करती थी ठंडी-ठंडी छाया-सी
अब आँगन से ढलता जाता है वो इक साया बरकत वाला

काट के काली शब आमादा है फिर ताज़ा सदमे सहने को
टूटा और नहीं बिखरा अब तक दिल-सा जियाला हिम्मत वाला

सुनने और समझने वाले सब अनचाहे कोहरामों में गुम
ख़ामोशी बनकर दर-दर भटका उजला लफ़्ज़ हिदायत* वाला

1- फ़ितरत*--स्वभाव
2- जीस्त*--जीवन
3- मुहज़्ज़ब*--सुसभ्य
4- लज़्ज़त*--आनंद
5- वाज़ेह*--स्पष्ट
6- हिदायत* --उपदेश

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