(22)
न कुछ ज़मीं से ताल्लुक, न आसमान से था
मेरे फ़रार का मतलब, फ़क़त उड़ान से था
मेरे फ़रार का मतलब, फ़क़त उड़ान से था
कभी जो लौट भी आया तो किसके पूछूँगा
यहीं-कहीं मेरा रिश्ता किसी मकान से था
यहीं-कहीं मेरा रिश्ता किसी मकान से था
न जाने कौन-सी गुमनाम बस्तियों में गिरा
वो एक तीर जो निकला हुआ कमान से था
वो एक तीर जो निकला हुआ कमान से था
पसे-ज़बान भी कुछ है, ये सोचता कैसे
मेरे यक़ीं को ताअल्लुक तेरी ज़बान से था
मेरे यक़ीं को ताअल्लुक तेरी ज़बान से था
न जाने कैसे उड़ा ले गई उसे भी हवा
वो इक बरक़ जो मुहब्बत की दास्तान से था
वो इक बरक़ जो मुहब्बत की दास्तान से था
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