(21)
ये भयानक रूप तो पहले कभी देखा नहीं
अब के तो पतझड़ में पेड़ों पर कोई पत्ता नहीं
अब के तो पतझड़ में पेड़ों पर कोई पत्ता नहीं
वो कि अब जा भी चुका है मुझसे नाता तोड़कर
सोचता हूँ, मैंने उसका नाम तक पूछा नहीं
सोचता हूँ, मैंने उसका नाम तक पूछा नहीं
शहर के इक घर में इक नादान बच्चे को मुझे
छत से चिड़ियों को उड़ाने का समाँ भूला नहीं
छत से चिड़ियों को उड़ाने का समाँ भूला नहीं
रात के काले परिंदों, और कुछ पल सो रहो
सुबह का सूरज अभी दीवार पर उतरा नहीं
सुबह का सूरज अभी दीवार पर उतरा नहीं
ऐसा लगता है कि आवाज़ की परछाई-सी
नक़्श है लेकिन मुझे वो नक़्श सा लगता नहीं
नक़्श है लेकिन मुझे वो नक़्श सा लगता नहीं
आज अपने आपसे मिलकर मैं ये सोचा किया
जैसा होना चाहिए था, आदमी वैसा नहीं
जैसा होना चाहिए था, आदमी वैसा नहीं
1- निशान
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें