मंगलवार, 26 जुलाई 2011

'प्यार का मौसम गुज़र गया'

(6)
धड़का था दिल कि प्यार का मौसम गुज़र गया
हम डूबने चले थे कि दरिया उतर गया

ख़्वाबों की मताए-गिराँ* किसने छीन ली
क्या जानिए वो नींद का आलम किधर गया

तुमसे भी जब निशात* का इक पल न मिल सका
मैं कासा-ए-सवाल* लिए दर-बदर गया

भूले से कल जो आइना देखा तो ज़हन में
इक युनहदिम* मकान का नक़्शा उभर गया

तेज़ आँधियों में पाँव ज़मीं पर न टिक सके
आख़िर को मैं गुबार की सूरत बिखर गया

गहरा सकूत, रात की तनहाइयां, खंडहर
ऐसे में अपने आपको देखा तो डर गया

कहता किसी से क्या कि कहां घूमता फिरा
सब लोग सो गए तो मैं चुपके से घर गया

1-मताए- गिराँ-बहूमुल्य पूंजी
2-निशात- सुख
3-कासा-ए-सवाल- भिक्षा का प्याला
4-युनहदिम- खंडहर

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