मंगलवार, 26 जुलाई 2011

'प्यार का दिन डूबने लगा'

(5)
दिल तेरे इंतज़ार में कल रात भर जला
नर्गिस का फूल पिछले पहर तक खिला रहा

पहले तो अपने आपसे बेज़ारियां* बढ़ी
फिर यों हुआ कि तुझसे भी दिल ऊबने लगा

अच्छा हुआ कि सारे खिलौने बिखर गए
गुंचे, सुबू*, शराब, शफ़क़, चांदनी, सबा

सहरा की वुसअतों* में न जब आफ़ियत मिली
मैं शहर-शहर दिल का सुकूँ ढ़ूँढ़ता फिरा

जागा हुआ था नींद की मदहोशियों में हुस्न
देखा सकूते-शब* में बदन बोलता हुआ

पहले भी किसने प्यार के वादे वफ़ा किए
पहले भी कोई प्यार में सच बोलता न था

दफ़्तर से थक के लौट रहा था कि घर के पास
पहुँचा तो तेरे प्यार का दिन डूबने लगा

1-बेजारियाँ- उकताहट
2-सुबू- मदिरा-पात्र
3-सबा- समीर
4-वुसअतों- फैलाव
5-सकूते-शब- रात का सन्नाटा

1 टिप्पणी: