गुरुवार, 18 अगस्त 2011

'हम भी थे कभी ज़िंदा-दिली में बहुत आगे'

(31)
आएंगे भँवर अबकी सदी मे बहुत,आगे
रहना है हमें, दीदावरी में बहुत आगे

मुमकिन कि हो इनमें तुम्हारा कोई अपना
अंबार है लाशों का नदी में बहुत आगे

मतलब हो तो बिक जाता हर शख़्स यहाँ का
यह शहर तो है पेशावरी में बहुत आगे

सजने लगा बाज़ार मुहल्ले का वहाँ भी
इक घर था, कुशादा-सा गली में बहुत आगे

ज़ख़्मों को भी हमने भी हंस हंस के सहा था
हम भी थे कभी ज़िंदा-दिली में बहुत आगे

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें