बुधवार, 14 सितंबर 2011

'अपने दिल में जीने का अरमान न ला'

(55)
अक्स पुराना दे न सके तो दरपन पर बहुतान न ला
मेरे पुराने चाहत-नामे वापस मेरी जान न ला

बादल घिर-घिर आते थे जब चिड़ियाँ रेत नहाती थीं
वो दिन कब के बीत गए, उन बातों पर ईमान न ला

कुछ और नए हथियार जुटा, और वार करे तो सोच के कर
मेरी छाती पत्थर की है, अब वो पुराने बान न ला

शाम के नेमत-ख़ाने में कल सुब्ह की ख़ातिर छोड़ न कुछ
कल का आलम किसने देखा, कल के लिए सामान न ला

ज़िंदा रहकर जान ग़नीमत साँस के आने जाने को
इससे बढ़कर अपने दिल में जीने का अरमान न ला

इज़्ज़त जिसका नाम है भाई, वो है नाज़ुक चीज़ बहुत
बस्ती-बस्ती घूम के घर आ, साथ मगर मेहमान न ला

1- बिंब
2- प्रेमपत्र
3- रसोई की अलमारी

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